The non-dualistic philosophy (Advaita Vedanta) has been beautifully summarized by the great Hindu scholar and philosopher Ādi Śankarācārya in just six stanzas. This famous poem is popularly known as Atma-Shatkam (also known as Nirvana Shatkam).
According to the legends, Ādi Śankarācārya, at a young age of eight years, travelled towards North India from Kerala in search of his guru. While wandering in the Himalayas, seeking to find his guru, he encountered a sage who asked him, "Who are you?” He replied with an extempore Composition (the Atma-Shatkam) that brought out the Advaita Vedanta philosophy – the essence of which is that "Nirvana" is complete equanimity, peace, tranquility, freedom and joy. "Atma" is the True Self. The sage the boy was talking to was Swami Govindapada Acharya, who was, indeed, the teacher he was looking for.
निर्वाण-षटकम् nirvAna shatkam
मनो बुद्धि अहंकार चित्तानि नाहं
न च श्रोत्र जिव्हे न च घ्राण नेत्रे |
न च व्योम भूमि न तेजो न वायु:
चिदानंद रूपः शिवोहम शिवोहम ||१||
[मैं मन, बुद्धि, अहंकार और स्मृति नहीं हूँ, न मैं कान, जिह्वा, नाक और आँख हूँ। न मैं आकाश, भूमि, तेज और वायु ही हूँ, मैं चैतन्य रूप हूँ, आनंद हूँ, शिव हूँ, शिव हूँ...]
I am not mind, nor intellect, nor ego, nor the reflections of inner self (chitta).
I am not the five senses.
I am beyond that.
I am not the ether, nor the earth, nor the fire, nor the wind (the five elements).
I am indeed, That eternal knowing and bliss, the auspicious (Shivam), love and pure consciousness.
न च प्राण संज्ञो न वै पञ्चवायुः
न वा सप्तधातु: न वा पञ्चकोशः |
न वाक्पाणिपादौ न च उपस्थ पायु
चिदानंदरूप: शिवोहम शिवोहम ||२||
[न मैं मुख्य प्राण हूँ और न ही मैं पञ्च प्राणों (प्राण, उदान, अपान, व्यान, समान) में कोई हूँ, न मैं सप्त धातुओं (त्वचा, मांस, मेद, रक्त, पेशी, अस्थि, मज्जा) में कोई हूँ और न पञ्च कोशों (अन्नमय, मनोमय, प्राणमय, विज्ञानमय, आनंदमय) में से कोई, न मैं वाणी, हाथ, पैर हूँ और न मैं जननेंद्रिय या गुदा हूँ, मैं चैतन्य रूप हूँ, आनंद हूँ, शिव हूँ, शिव हूँ...]
Neither can I be termed as energy (prana),
nor five types of breath (vayus),
nor the seven material essences,
nor the five coverings (pancha-kosha).
Neither am I the five instruments of elimination, procreation, motion, grasping, or speaking.
I am indeed, That eternal knowing and bliss, the auspicious (Shivam), love and pure consciousness.
न मे द्वेषरागौ न मे लोभ मोहौ
मदों नैव मे नैव मात्सर्यभावः |
न धर्मो नचार्थो न कामो न मोक्षः
चिदानंदरूप: शिवोहम शिवोहम ||३||
[न मुझमें राग और द्वेष हैं, न ही लोभ और मोह, न ही मुझमें मद है न ही ईर्ष्या की भावना, न मुझमें धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष ही हैं, मैं चैतन्य रूप हूँ, आनंद हूँ, शिव हूँ, शिव हूँ...]
I have no hatred or dislike, nor affiliation or liking, nor greed, nor delusion, nor pride or
haughtiness, nor feelings of envy or jealousy.
I have no duty (dharma), nor any money, nor any desire (kama), nor even liberation
(moksha).
I am indeed, That eternal knowing and bliss, the auspicious (Shivam), love and
pure consciousness.
न पुण्यं न पापं न सौख्यं न दु:खं
न मंत्रो न तीर्थं न वेदों न यज्ञः |
अहम् भोजनं नैव भोज्यम न भोक्ता
चिदानंद रूप: शिवोहम शिवोहम ||४||
[न मैं पुण्य हूँ, न पाप, न सुख और न दुःख, न मन्त्र, न तीर्थ, न वेद और न यज्ञ, मैं न भोजन हूँ, न खाया जाने वाला हूँ और न खाने वाला हूँ, मैं चैतन्य रूप हूँ, आनंद हूँ, शिव हूँ, शिव हूँ...]
I have neither merit (virtue), nor demerit (vice). I do not commit sins or good deeds,
nor have happiness or sorrow, pain or pleasure.
I do not need mantras, holy places, scriptures (Vedas), rituals or sacrifices (yagnas).
I am none of the triad of the
observer or one who experiences, the process
of observing or experiencing, or any object being observed or experienced.
I am indeed, That eternal knowing and bliss, the auspicious (Shivam), love and pure consciousness.
न मे मृत्युशंका न मे जातिभेद:
पिता नैव मे नैव माता न जन्म |
न बंधू: न मित्रं गुरु: नैव शिष्यं
चिदानंद रूप: शिवोहम शिवोहम ||५||
[न मुझे मृत्यु का भय है, न मुझमें जाति का कोई भेद है, न मेरा कोई पिता ही है, न कोई माता ही है, न मेरा जन्म हुआ है, न मेरा कोई भाई है, न कोई मित्र, न कोई गुरु ही है और न ही कोई शिष्य, मैं चैतन्य रूप हूँ, आनंद हूँ, शिव हूँ, शिव हूँ...]
I do not have fear of death, as I do not have death.
I have no separation from my true self, no doubt about my existence, nor have I
discrimination on the basis of birth.
I have no father or mother, nor did I have a birth.
I am not the relative, nor the friend, nor the guru, nor the disciple.
I am indeed, That eternal
knowing and bliss, the auspicious (Shivam), love and pure consciousness.
अहम् निर्विकल्पो निराकार रूपो
विभुव्याप्य सर्वत्र सर्वेन्द्रियाणाम |
सदा मे समत्वं न मुक्ति: न बंध:
चिदानंद रूप: शिवोहम शिवोहम ||६||
[मैं समस्त संदेहों से परे, बिना किसी आकार वाला, सर्वगत, सर्वव्यापक, सभी इन्द्रियों को व्याप्त करके स्थित हूँ, मैं सदैव समता में स्थित हूँ, न मुझमें मुक्ति है और न बंधन, मैं चैतन्य रूप हूँ, आनंद हूँ, शिव हूँ, शिव हूँ...]
I am all pervasive. I am without any attributes, and without any form. I have neither
attachment to the world, nor to liberation (mukti).
I have no wishes for anything because I am everything, everywhere, every time,
always in equilibrium.
I am indeed, That eternal knowing and bliss, the auspicious (Shivam), love and pure consciousness.
इति श्रीमद जगद्गुरु शंकराचार्य विरचितं निर्वाण-षटकम सम्पूर्णं
No comments:
Post a Comment